गतिशीलता ही समाज, संस्कृति एवं सभ्यता को जीवन प्रदान करने वाली प्राण- वायु है । ” इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए Bsc 1St Year Answer
प्राणवायु के बिना जीवन संभव नहीं है। मनुष्य के शरीर में स्थित प्राण ही उसे आरोग्य व स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं। प्राणायाम प्राणवायु को नियंत्रित करने की प्रक्रिया है। हालांकि योग-शास्त्रों में कई प्रकार के प्राणायामों के संदर्भ में बताया गया है, लेकिन हम यहां उन्हीं प्राणायामों के बारे में जानकारी दे रहे हैं, जो चलन में हैं। ये प्राणायाम हैं- कपालभाति, नाड़ी शोधन, शीतली, भ्रामरी, सूर्यभेदी, उज्जाई, भस्त्रिका और चन्द्रभेदी ।
कपालभाति प्राणायाम कपाल माने माथा और भाति का अर्थ है रोशनी, ज्ञान व प्रकाश । योगियों ने कहा है कि इस प्राणायाम से हमारे मस्तिष्क या सिर के अग्र भाग में रोशनी प्रज्वलित होती है और हमारे अग्र भाग की शुद्धि होती है। कपालभाति प्राणायाम षटकर्म की क्रिया के अर्न्तगत भी आता है। इसे कपाल शोधन प्राणायाम भी कहा जाता है।
विधि : जमीन पर पद्मासन या फिर सुखासन की अवस्था में बैठें, फिर पूरे बल से नासिका से सांस को बाहर छोड़ें। अब श्वास लेने का प्रयास न करें, श्वास स्वत: आ जाएगा। जब हमारा श्वास बाहर निकलेगा, उसी समय हम अपने पेट का संकुचन करेंगे। पहले धीरे-धीरे इसका अभ्यास करें, उसके बाद धीरे-धीरे श्वास छोड़ने और पेट के संकुचन की गति बढ़ा दें। शुरू-शुरू में नये अभ्यासी कम-से-कम 20 चक्रों का अभ्यास करें। एक सप्ताह उपरांत 50 चक्रों तक अभ्यास को बढ़ा दें। ध्यान रहे कमर और गर्दन सीधी हो, आंखें बंद (या खोलकर भी) अभ्यास कर सकते हैं। दोनों हाथ ज्ञान मुद्रा में हों।
लाभ व प्रभाव : इस प्राणायाम के अभ्यास से नाक, गले एवं फेफड़े की सफाई होती है, चेहरे पर कांति, लालिमा और ओजस्व आता है। इससे चेहरे की झुर्रियां, दाग, फुन्सी आदि दूर होते हैं। महिलाओं में गर्भाशय के विकार, मासिक धर्म संबंधित कठिनाई और गर्भाशयजनित दोष दूर होते हैं। यह पाचन संस्थान को मजबूत बना
सावधानियां : हृदय रोगी, उच्च रक्तचाप के रोगी, मिर्गी स्ट्रोक, हार्निया और अल्सर के रोगी तथा गर्भवती महिलाएं इसका अभ्यास न करें ।
विशेष : चक्कर आने या फिर सरदर्द की स्थिति में कुछ देर आराम करें और पुन: इसका अभ्यास करें। इसे करते हुए हर दिन कम से कम 15 गिलास पानी अवश्य पीयें।
नाड़ी शोधन प्राणायाम योगियों ने इस प्राणायाम का नाम नाड़ी शोधन या अनुलोम-विलोम प्राणायाम इसलिए रखा है, क्योंकि इसके अभ्यास से हमारे शरीर की 72 हजार नाड़ियों की शुद्धि होती है।